सिनेमा का शोर
मनोरंजन की दुनियाँ में सिनेमा मनोरंजन के अनेक साधनों में से एक हैं, अचरज की बात तो ये है की आजकल ये सिर्फ मनोरंजन का ही साधन नहीं बल्कि अनेक अपराधों एवं गाली -गलौज का स्रोत बन गया हैं अब तो इसकी पहुँच और भी सुलभ हो गयी है, छोटे से बच्चे भी इसकी पहुँच के बहुत ही नजदीक हैं क्योंकि हर एक के हाथ में मोबाइल है। रोड पर चलते मनचलों की बद्तमीज़ी और खून-खराबे का शोर इसका जीता जागता उदाहरण हैं। आजकल ऐसी ही फिल्में ज्यादा बिकती हैं जिसमें फूहड़ता की छाप, कत्ले-आम और गालियाँ भरी हों। अच्छी नैतिकता वाली पिक्चरें तो कहीं पीछे ही छूट गयी हैं। क्या ऐसी फिल्में देख कर आज के नागरिकों और बच्चों में सभ्यता का विकास हो सकेगा ? क्या यही सब देख कर हम सब एक बेहतर भविष्य की कामना कर सकते हैं ?
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